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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


'क्या आपको उत्तर दिशा की ओर जाना है?' स्वर में मधुरता ला मैंने जिज्ञासा की।

'मुझे उत्तर दिशा की ओर मुँह कर यह शंख फूँकना है।' उसने कहा, 'आप बता दें, तौ मैं फूँक दूँ।'

मैंने कमर पर हाथ रख सारा चौराहा घूमकर देखा, मगर उत्तर दिशा कहीं नजर नहीं आई। दायीं ओर एक लांड्री थी, बायीं ओर पानवाला और उसके पास एक साइकिलवाला। सामने एक पनचक्की थी। एकाएक मुझे स्कूल में पढ़ी एक बात याद आई कि यदि हम पूर्व की ओर मुँह करके खड़े रहें, तो हमारे दाएँ हाथ की ओर दक्षिण तथा बाएँ हाथ की ओर उत्तर होगा। वामपंथ और दक्षिणपंथ के मतभेद यहीं से शुरू होते हैं।

'देखिए, यदि आप मुझे पूर्व दिशा बता दें, तो मैं आपको उत्तर दिशा बता सकता हूँ।' मैंने प्रस्ताव किया।
'सूर्योदय जिधर से होता है, वही पूर्व दिशा है।'
'जी हां।'
'किधर से होता है सूर्योदय?' पूछने लगे।
'मुझे नहीं पता। मैं देर से सोकर उठता हूँ।'
उन्होंने अपने दिव्य नेत्रों से मेरी ओर देखा जैसे वे किसी परम आलसी की ओर देख रहे हों और बोले, 'आप सोते रहते हैं, सारा देश सोता रहता है और कलिकाल सिर पर छा गया है। चारों ओर पाप फैल रहा है, धर्म का नाश हौ रहा है।'

'हरे हरे!' मैंने सहमतिसूचक ध्वनि की।

'उत्तर दिशा पापात्माओं का केन्द्र है, दिल्ली राजधानी अधर्मियों का अड्डा बन गई है।'
'नहीं, ऐसा तो नहीं, स्थानीय चुनावों में तो धार्मिक लोग जाते हैं।' मैंने कहा।
'मैं पार्लमेंट की बात कर रहा हूँ बाबू, संसद भवन और शासन की।' 
'आप वहीं जाकर कुछ अनशन-वनशन करेंगे?' मैंने पूछा। 
'नहीं, मैं यह दिव्य शक्ति-सम्पन्न शंख उत्तर दिशा की ओर
फूँकूँगा। इसका स्वर दिगन्त तक गूँज उठेगा और उत्तर दिशा की पापात्माएँ इसका स्वर सुनकर नष्ट हो जाएँगी।'

'शंख क्या एकदम बिगुल हुआ। आप इसे माइक के सामने फूँकेंगे।' मैंने जिज्ञासा की।
'बाबू समय आ गया है।' उन्होंने सिर के ठीक ऊपर चमकते हुए सूर्य की ओर देखा और कहा, 'मुझे ठीक मध्याह्न में शंख फूँकना है। आप जल्दी बताइए उत्तर दिशा किधर है?'
'आप चारों ओर घूमकर सभी दिशाओं में इसे फूँक दीजिए, पाप तो सर्वत्र फैला हुआ है।'
'नहीं, केवल उत्तर दिशा में। गुरुजी की यही आज्ञा है। उत्तर में सत्ता का केन्द्र है। पहले उसे अधिकार में लेना होगा। फिर वहीं से सर्वत्र पुण्य फैलेगा। बताइए, शीघ्र बताइए। मेरी सात दिनों की मन्त्र-साधना इस छोटी-सी सूचना के अभाव में नष्ट हुई जाती है।'

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